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माँ लक्ष्मी जी की पूजा से पायें, इस दीपावली, धन प्राप्ति का वरदान

 

जनसामान्य के लिए दीपावली पूजन की विधि

– आचार्य अनुपम जौली 

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हमारे देश में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टियों से अप्रतिम महत्त्व है। सामाजिक दृष्टि से इस पर्व का महत्त्व इसलिए है कि दीपावली आने से पूर्व ही लोग अपने घर-द्वार की स्वच्ïछता पर ध्यान देते हैं। घर का कूड़ा-करकट साफ करते हैं। टूट-फूट सुधरवाकर घर की दीवारों पर सफेदी, दरवाजों पर रंग-रोगन करवाते हैं। इससे उस स्ïथान की न केवल आयु ही बढ़ जाती है, बल्कि आकर्षण भी बढ़ जाता है।

दीपावली के दिन धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों का कथन है कि जो व्यक्ति दीपावली को दिन-रात जागरण करके लक्ष्मी की पूजा करता है उसके घर लक्ष्मीजी का निवास होता है। आलस्य और निद्रा में पड़कर जो दीपावली यूं ही गंवाता है, उसके घर से लक्ष्मी रूठकर चली जाती है।

ब्रह्म  पुराण में लिखा है कि कार्तिक की अमावस्या को अर्ध रात्रि के समय लक्ष्मी महारानी स्द्ग्रह्स्थों के घर में जहां-तहां विचरण करती हैं। इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीपमालिका मनाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं और वहां स्थाई रूप से निवास करती हैं। यह अमावस्या प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली श्रेष्ठ होती है। यदि आधी रात तक न भी रहे तो प्रदोषव्यापिनी दीपावली माननी चाहिए।

प्राय: प्रत्येक घर में लोग अपने रीति-रिवाज के अनुसार गणेश-लक्ष्मी पूजन तथा द्रव्यलक्ष्मी-पूजन करते हैं। कुछ स्थानों में दीवार पर अथवा काष्ठ पट्टी  का पर खडिय़ा मिटटी तथा विभिन्न रंगों द्वारा चित्र बनाकर या पाटे पर गणेश लक्ष्मी की मूर्ति रखकर कुछ चांदी आदि के सिक्के रखकर इनका पूजन करते हैं तथा थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों के मध्य तेल से प्रज्वलित चौमुखा दीपक रखकर दीपमालिका का पूजन भी करते हैं और पूजा के अनन्तर उन दीपों को घर के मुख्य-मुख्य स्थानों पर रख देते हैं। चौमुखा दीपक रातभर जले ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए।

जनसाधरण के लिए लक्ष्मी सुख प्राप्ति हेतु पूजन

कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवती श्री महालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिए।

पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजा स्ïथान को भी पवित्र कर लेना चाहिए एवं स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धापूर्वक सायंकाल इनका पूजन करना चाहिए। मूर्तिमयी श्री महालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसर-युक्त चन्दन से अष्ïटदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री-धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्री पर निम्ïन मंत्र पढ़कर जल छिड़कें :

अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्था गतोऽपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥

तदनन्तर जल-अक्षतादि लेकर पूजन का संकल्प करें :

संकल्प : विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायं तिथौ… वासरे ….. गोत्रोत्पन्न:…. …. गुप्तोऽहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये

– ऐसा कहकर संकल्प का जल आदि छोड़ दें।

पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा की निम्न रीति से प्राण प्रतिष्ठा कर लें।

प्रतिष्ठा – बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्रों का पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं –

मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तमो३म्प्रतिष्ठ॥

अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।

अस्यै देवत्वमचायैमामहेति च कश्चन॥

इस प्रकार प्रतिष्ठाकर सर्वप्रथम भगवान गणेशजीका पूजन करें। तदनन्तर कलश पूजन तथा षोड्शमातृ का पूजन करें। प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोड्शोपचार पूजन करें। महालक्ष्म्यै नम:। इस नाम मंत्र से भी उपचारों द्वारा पूजा की जा सकती है।

प्रार्थना

विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के अनन्तर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें :

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकै-

र्युक्तं सदायत्तव पादपङ्कजम्।

परावरं पातु वरं सुमङ्गलं

नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये॥

भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्॥

महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।

प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।

समर्पण : पूजन के अन्त में कृतेनानेनपूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। – यह वाक्य उच्ïचारण कर समस्त पूजन-कर्मभगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल गिरायें।

भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार पूजन के अनन्तर महालक्ष्मीपूजन के अङ्गरूप, देहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है।

देहलीविनायक पूजन

व्यापारिक प्रतिष्ठानों में दीवारों पर ॐ श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक-चिह्न, शुभ-लाभ आदि मांगलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादि से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर देहलीविनायकाय नम: इस नाम मंत्र द्वारा गन्ध-पुष्पादि से पूजन करें।

श्रीमहाकाली (दवात) पूजन

स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पुञ्ज में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वास्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें। ॐ श्रीमहाकाल्यै नम: इस नाममंत्र से गन्ध पुष्पादि पुञ्जों में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें। श्री महाकाल्यै नम: इस नाम मंत्र से गन्ïध पुष्पादि पञ्चोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें और अन्त में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें –

कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।

उत्पन्नात्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये॥

याकालिका रोगहरा सुवन्द्या

भक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।

जनैर्जनानां भयहारिणी च

सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु॥

लेखनी पूजन

लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्॥

लेखनीस्थायै देव्यै नम: इस नाममंत्र द्वारा गन्ध-पुष्पाक्षत आदि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें –

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यत:।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव॥

सरस्वती (बहीखाता) पूजन

बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चन्दन से स्वस्तिक चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती जी का ध्यान इस प्रकार करें :

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा॥

वीणापुस्तधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम: इस नाम मंत्र से गन्धादि उपचारों द्वारा  पूजन करें।

कुबेर पूजन

तिजोरी अथवा रुपये रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वास्तिकादि से अलंकृत कर उसमें निधिपति कुबेर का आह्वान करें :

आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।

कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर॥

आह्वान के पश्चात कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से यथा लब्धोपचार पूजन कर अन्त में इस प्रकार प्रार्थना करें :

धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्यधिपाय च।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:॥

इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्व पूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी में रखें।

तुला पूजन

सिन्दूर से तराजू आदि पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृ देवता का इस प्रकार ध्यान करना चाहिए-

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोगिना।

इसके बाद तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम: इस नाममंत्र से गन्धाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।

दीपमालिका पूजन

किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्जवलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योतिका दीपावल्यै नम: इस नाममंत्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें –

त्वंज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो  विद्युदअग्निश्च तारका:।

सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:॥

दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार ईख, पानीफल, धानका लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ायें। धानका लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अन्त में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर उनसे सम्पूर्ण गृह को अलंकृत करें।

प्रधान आरती

इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अंग-प्रत्यंगों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिए। इसके लिए एक थाली में स्वास्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा पुष्ïपों के आसन पर किसी दीपक आदि में घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करें।

एक पृथक पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख लें। आरती थाल का जल से प्रोक्षण कर लें। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनों के साथ घंटानादपूर्वक निम्ïन आरती गाते हुए महालक्ष्मीजी की मंगल आरती करें :

आरती

ॐ जय लक्ष्मी अम्बे, मैया जय आनन्द कन्दे।

सत् चित् नित्य स्वरूपा, सुर नर मुनि सोहे॥ ॐ जय….

कनक समान कलेवर, दिव्याम्बर राजे। मैया…..

श्री पीठे सुर पूजित, कमलासन साजे॥ ॐ जय…..

तुम हो जग की जननी, विश्वम्भर रूपा। मैया…..

दुख दारिद्रय विनाशे, सौभाग्य सहिता॥ ॐ जय….

नाना भूषण भाजत, राजत सुखकारी। मैया……

कानन कुण्डल सोहत, श्री विष्णु प्यारी॥ ॐ जय…

उमा तुम्हीं, इन्द्राणी तुम सबकी रानी। मैया….

पद्म शंख कर धारी, भुक्ति, मुक्ति दायी॥ ॐ जय…

दु:ख हरती सुख करती, भक्तन हितकारी। मैया…

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ ॐ जय…..

अमल कमल घृत मात:, जग पावन कारी। मै….

विश्व चराचर तुम ही, तुम विश्वम्भर दायी॥ ॐ जय…

कंचन थाल विराजत, शुभ्र कपूर बाती। मैया…..

गावत आरती निशदिन, जन मन शुभ करती॥ ॐ जय…..

मंत्र-पुष्पाञ्जलि

दोनों हाथों में कमल आदि के पुष्प लेकर हाथ जोड़ें और निम्न मंत्र का पाठ करें :

ॐ या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नता: स्म:, स्म परिपालय देव विश्वमं॥

ॐ श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि।

ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर साष्टांग प्रमाण करें। पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें :

आवाहनं न जानामिन जानामि क्षमस्व परमेश्वरि॥

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु में॥

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्ïलभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्॥

पुन: प्रणाम करके अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मïण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।

विसर्जन

पूजन के अंत में अक्षत लेकर गणेश एवं महालक्ष्मी की नूतन प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें :

यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।

इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च॥

 

ॐ तत सत ॥

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